नमस्कार आप सभी लोगों का सवागत है ग्रह गोचर में आज हम बात करेंगे की भगवान जगन्नाथ एवं रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है तो चलिए जानते है.
रथ यात्रा 2021 में कब है?
पिछले आठ सौ साल पहले से भगवान जगन्नाथ जी रथ यात्रा निकाली जाने की परम्परा रही है. जगन्नाथ पूरी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का उत्सव आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को मनाया जाता है इस बार रथ यात्रा 4 जुलाई से शुरू हो रही है।
आज के दिन इस रथ यात्रा उत्सव के दौरान जगन्नाथ को रथ पर बैठा कर पुरे नगर में भरमन कराया जाता है तो आइए जानते है की आखिर क्यों और कैसे निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा और क्या है इसके पीछे की कहानी।
रथ यात्रा का महत्व क्या है?
बता दे की जगन्नाथ रथ यात्रा का आरम्भ भगवान जगन्नाथ जी के रथ के सामने सोने के हत्ते वाली झाड़ू को लगाकर किया जाता है. जिसके बाद मंत्रो, उचारिक के साथ इस रथ यात्रा को शुरू किया जाता है. कई पारम्परिक वाद्य यंत्रो के आवाज के बीच विशाल रथों को सैकड़ो लोग मोटे-मोटे रसों से खींचते है।
सबसे पहले बलभद्र जी का रथ ताल ध्वज में प्रवेश करता है. जिसके बाद सुभद्रा जी का रथ चलना शुरू होता है. सबसे आखिर में जगन्नाथ जी के रथ को कई श्रद्धा पूर्वक लोग खींचना शुरू करते है और ऐसा माना ज ता है की जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. आपको बता दे की भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा गुंडीचा मन्दिर पहुंचकर खत्म होती है. यह वही मंदिर है जहां विश्कर्मा ने तीनो देव प्रतिमाओ का निर्माण किया था। इस मंदिर को गुंडीचा पहाड़ी भी कहते है।
जगन्नाथ भगवान बीमार क्यों होते है?
ख़ास बात यह है की इस जगह को भगवान का मौसी का घर भी का जाता है। सूर्यास्त तक अगर रथ गुंडिचा मंदिर तक नहीं पहुंच पाता है तो वह अगले दिन अपनी रथ यात्रा को पूरी करता है। इस मंदिर में भगवान एक हप्ते तक रहते है जहां उनकी पूजा अर्चना की जाती है। भगवान को जनकपुर के मौसी के घर स्वादिष्ट पाकवानो का भोग लगाया जाता है।
जिसके बाद जब भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते है तो उन्हें पद्य का भोग लगाया जाता है. जिसे वह जल्दी ठीक हो जाते है रथ यात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूढ़ते हुए यहां आती है देवतापति के राज दरवाजा बंद करने पर वह नराज होकर रथ का पहिया तोड़कर हेरा गोविली साही का मुहल्ला जहां लक्ष्मी जी का मंदिर है वहां लौट जाती हैं।
उसके बाद भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने वहां आते है और कहाँ जाता है की वो वहां उनसे क्षमा मांगने के लिए साथ में कई तरह के उपहार देकर खुश करने की कोशिस भी करते है माता लक्ष्मी जी को भगवान जगन्नाथ के द्वारा मना लिया जाने को विजय का प्रतीक मानकर इस दिन विजयदशमी और वापसी को बहुत कड़ी गोचा के रूप में मनाया जाता है।
कहाँ भी जाता है की नव दिन बूढ़े होने के बाद भगवान जगरनाथ जगन्नाथ मंदिर चले जाते है। हर साल यह क्रम लगातार जारी रहता है।
आशा और पूर्ण विश्वास है की आपको यह जानकारी काफी पसंद आई होगी तो आप अपने दोस्तों के साथ रथ यात्रा की इस जानकारी को “सोशल मीडिया” पर शेयर करे धन्याद!